पुसौर के बड़े नेताओं के छोटे विचार से क्षेत्र के जनाधार वाले कार्यकर्त्ता सामाजिक कार्यकर्ताओ के मनोबल गिरना स्वाभाविक है आत्मीय चिंतन के विषय है कार्यकर्त्ता संगठन के नींव रीढ़ की हड्डी होते है बिना भक्त के भगवान नहीं हो सकता वैसे ही बिना ईमानदार कार्यकर्त्ता के संगठन मजबूत नहीं हो सकता है व्यक्तिगत स्वार्थ के हावी गुटबाजी होने से संगठन कमजोर होता है ये कटु सत्य है और यही कारण है की कुछ दलित सामाजिक विरोधी नेता दोनों पार्टियों के भेदभाव आंतरिक प्रदर्शन में देखें जा सकते है यही बड़े कारण रहे है की दोनों राष्ट्र के बड़े पार्टी दलित और आदिवासी का न ही भला कर पा रहा है न ही विश्वास जीत पा रहा है पुसौर में सत्तारुद्ध के नेता भी अछूता नहीं है