Home उत्तरप्रदेश

उत्तर प्रदेश: उपचुनावों के नतीजों से बड़ा हो गया है उनकी विश्वसनीयता का सवाल

BBC Hindi News by BBC Hindi News
November 23, 2024
Reading Time: 1 min read
0
उत्तर प्रदेश: उपचुनावों के नतीजों से बड़ा हो गया है उनकी विश्वसनीयता का सवाल
Post Views: 509

उत्तर प्रदेश में नौ विधानसभा सीटों के उपचुनावों के नतीजों की विश्वसनीयता का सवाल कम से कम इस मायने में नतीजों से बड़ा हो गया है कि जिस तंत्र पर इनमें ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं की भागीदारी सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी थी, वही उसके आड़े आकर मनमाने तौर पर उसे नापसंद मतदाताओं को अपने मताधिकार के इस्तेमाल से रोकता दिखाई दिया और जिस चुनाव आयोग को तटस्थ रहकर स्वतंत्र व निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करना था, उसने इस ओर से या तो आंखें मूंदे रखीं या ‘बहुत कुछ’ देखकर भी ‘बहुत कम’ देखा.

RELATED POSTS

Police secures conviction in Heinous crime in Ganderbal

DLSA Ganderbal holds meeting-cum-orientation and training session for SAATHI unit members

Food Safety Team Conducts Intensive Market Inspection to Ensure Compliance with Good Storage Practices

यह सारा घटनाक्रम इस मायने में अभूतपूर्व था कि इससे पहले नापसंद मतदाताओं को पोलिंग बूथों तक पहुंचने से बाहुबली व दंबग आदि ही रोका करते थे. सत्तातंत्र तो मतदाताओं को रोकने वालों को रोकता था.

ऐसे में इस सवाल को छोटा क्योंकर किया जा सकता है कि सत्ता तंत्र इस तरह चुनाव कराने के बजाय हराने व जिताने लगेगा तो उसके नतीजों में जनता के विश्वास की रक्षा कैसे संभव होगी और नहीं संभव होगी तो हमारे लोकतंत्र का भविष्य क्या होगा?

‘सिद्धि’ पर टकटकी

बहरहाल, इस बाबत सिर्फ यह मानकर संतोष किया जा सकता है कि ये आम चुनाव नहीं उपचुनाव थे और जिस तरह इन्हें आम चुनाव से ज्यादा मीडिया हाइप मिला, वैसा बहुत कम होता है. अलबत्ता, अफसोस की बात है कि इसके बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इनमें अपनी विजय पताका फहराने के लिए किसी भी हद से गुजरने पर आमादा दिखे और उनकी ‘शुभचिंतक’ सरकारी मशीनरी अपने ज्यादातर कर्तव्य व नैतिकताएं भूल गई. इस कदर कि कई स्तरों पर सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार का फर्क ही खत्म होता दिखा.

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने संभवतः किसी ऐसे ही अवसर के लिए लिखा था: साधन को भूल सिद्धि पर जब टकटकी हमारी लगती है, फिर विजय छोड़ भावना और कोई न हृदय में जगती है. तब जो भी आते विघ्नरूप हों धर्म, शील या सदाचार, एक ही सदृश हम करते हैं, उनके सिर पर पाद प्रहार.

ये उपचुनाव जीतने के लिए साधनों की शुचिता को भूलकर सांप्रदायिक व धार्मिक आधारों पर मतदाताओं के ध्रुवीकरण की जैसी कोशिशें हुईं, उनके मद्देनजर समाजवादी पार्टी कहें या विपक्ष के लिए नतीजे ‘बहुत बुरे’ हो सकते थे.

Buy JNews
ADVERTISEMENT

इसका अंदाजा इस बात से लगता था कि मुरादाबाद जिले की कुंदरकी सीट (जिसे तीन दशक बाद भाजपा बमपर बढ़त से जीती है) पर अल्पसंख्यक मतदाताओं को मतदान से रोकने की कोशिशें आम होती देख समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी हाजी मोहम्मद रिजवान को चुनाव आयोग से मतदान रद्द करने की मांग और उसके पूरी न होने पर मतगणना के बहिष्कार तक की धमकी देनी पड़ी.

इतना ही नहीं, सपा के राष्ट्रीय महासचिव व प्रवक्ता रामगोपाल यादव को मीरापुर, सीसामऊ और कटेहरी सीटों पर भी केंद्रीय बलों की देखरेख में फिर से मतदान कराने की मांग तक चले जाना पड़ा था.

लेकिन नतीजों ने सपा को दो सीटें देकर उसके आंसू पोंछ दिए और भाजपा व उसकी सरकार को ‘गुनाह-बेलज्जत’ के कगार तक पहुंचा दिया तो इसका सारा श्रेय मतदाताओं की परिपक्वता को दिया जाना चाहिए, जिन्होंने ‘बंटोगे तो कटोगे’ जैसे बदनीयत आह्वान के बूते लहर पैदाकर सत्ता की शक्ति से ‘क्लीन स्वीप’ का भाजपा का सपना तोड़ दिया. जैसे भाजपा को समझाना चाहते हों कि वह उनके विवेक को हमेशा के लिए अपने पास गिरवी रखने का मंसूबा न ही पाला करे तो ठीक.

ऐसा भी था एक समय

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के लोकतांत्रिक अतीत में एक ऐसा भी समय था, जब कोई नवनियुक्त मुख्यमंत्री छह महीने के भीतर विधानसभा की सदस्यता पाने की अनिवार्यता पूरी करने के लिए के लिए उपचुनाव लड़ता और उसके विरोधी प्राणप्रण से उसे हराने में लग जाते थे. तब वह उपचुनाव दोनों पक्षों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन जाता था. फिर भी सत्ता दल या मुख्यमंत्री कमोबेश ऐसी ‘गिरावट’ से परहेज ही किया करते थे.

1971 में ऐसे ही एक प्रतिष्ठापूर्ण उपचुनाव में, जो योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ द्वारा सांसद बनने के बाद खाली की गई गोरखपुर की मनीराम विधानसभा सीट पर हुआ था, प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह कांग्रेस प्रत्याशी रामकृष्ण द्विवेदी से अप्रत्याशित रूप से हार गए थे. यह किसी मुख्यमंत्री के चुनाव हार जाने का पहला मामला था, जो इसलिए घटित हुआ कि न त्रिभुवन नारायण सिंह ने अपने लिए कोई सुरक्षित सीट नहीं तलाशी, न ही उसे वीवीआईपी बनाया और न जीतने के लिए नीचे गिरना गवारा किया.

उस दौर में संभवतः इसका रिवाज भी नहीं था. लेकिन आज की राजनीति में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. यदि की जा सकती तो मतदाताओं के फैसले को प्रभावित करने के लिए सरकारी मशीनरी का वैसा दुरुपयोग नहीं ही दिखता, जैसा इन उपचुनावों में दिखाई दिया.

जैसा कि पहले कह चुके हैं, उपचुनाव आमतौर पर तभी ज्यादा महत्व पाते हैं, जब वे किसी सरकार के भविष्य के निर्धारक सिद्ध हो सकते हों. वह नाजुक बहुमत पर टिकी या अल्पमत में हो और उपचुनावों को तय करना हो कि वह और कमजोर होकर ढह जाएगी अथवा ‘मजबूत और टिकाऊ’ हो जाएगी.

अब बच जाएंगे योगी?

लेकिन इन उपचुनावों ने थोड़े भिन्न कारण से अहमियत पाई. इसे यों समझ सकते हैं कि योगी आदित्यनाथ की सरकार के पास इतना सुविधाजनक बहुमत था कि उपचुनाव वाली नौ की नौ सीटें हार जाने पर भी उसकी सेहत खराब नहीं होने वाली थी. न उसका बहुमत अल्पमत में बदलने वाला था, न वह किसी बड़े नैतिक दबाव से गुजरने वाली थी. अब सरकारें ऐसी हारों से खुद पर कोई नैतिक दबाव महसूस ही कहां करती हैं?

फिर इस बुलडोजरी सरकार की तो नैतिकताएं ही दूसरी तरह की हैं. लोकसभा चुनाव में प्रदेश की आधी से ज्यादा सीटें हार जाने का दबाव ही इस सरकार ने इस अर्थ में कहां महसूस किया?

अलबत्ता, सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए उस दबाव से बचना संभव नहीं हुआ क्योंकि अपनी पार्टी की अंदरूनी राजनीति में बेदखल कर हाशिए में डाले जाने की जो कोशिशें वे पहले से झेल रहे थे, उक्त हार ने उनको अझेल बना दिया. इतना कि उनके पास एक ही लाइफलाइन रह गई कि वे विधानसभा उपचुनावों में अपनी लोकप्रियता सिद्ध करें अन्यथा जाएं. इस लिहाज से ये उपचुनाव भाजपा से ज्यादा योगी के लिए अहम थे, जो उनके द्वारा इन्हें जीतने के लिए प्राण-प्रण से लगने में भी दिखा.

अलबत्ता, कुछ ठीक नहीं कि इनके नतीजों के बाद भी योगी अपनी कुर्सी पर आश्वस्त अनुभव कर पाएंगे या नहीं, क्योंकि उनके ‘बंटोगे तो कटोगे’ के नारे को नारा मानने से ही इनकार कर देने वाले उनके डिप्टी का कुछ ठिकाना नहीं कि वे कब फिर ‘तू बड़ा कि मैं’ वाला खेल शुरू कर दें. आखिरकार उन्हें ज्यादा किसे मालूम होगा कि यह जीत कैसे हासिल की गई है.

बहरहाल, जिन नौ सीटों पर उपचुनाव हुए, 2017 के आम चुनाव में उनमें से चार भाजपा व उसके सहयोगी दलों ने जीती थीं, जबकि मीरापुर की सीट रालोद ने सपा के साथ रहकर, जो अब पाला बदलकर भाजपा के साथ है. सरकारी मशीनरी के बगैर योगी सपा से उसकी सीटें न भी छीन पाते, इतनी ही जीत लेते तो भी अपनी पार्टी को जता सकते थे कि उनकी 2017 वाली लोकप्रियता बरकरार है. उस जीत में थोड़ी नैतिक चमक भी होती.

लेकिन क्या पता, प्रतिकूल लोकसभा चुनाव नतीजों का लगातार गहराता असर था या कुछ और कि वे उपचुनावों के ऐलान के पहले दिन से ही इसे लेकर अपनी असुरक्षा छिपा नहीं पा रहे थे. इसे उनके अपना ज्यादातर तकिया धार्मिक ध्रुवीकरण व सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग पर रखने उसके लिए ही नाना पापड़ बेलने में देखा जा सकता था.

सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की मानें तो अंत तक वे ‘हिल’ गए थे और वोट के बजाय खोट से जीतने की कोशिश में लग गए थे. यादव का आरोप था कि वर्दीधारी पुलिसकर्मियों के अलावा सादे कपड़ों में तैनात पुलिसकर्मी भी पीडीए (पिछड़े, दलित व अल्पसंख्यक) मतदाताओं को मतदान करने से रोक रहे थे. इसके लिए कई जगह उनके रास्ते बंद कर दिए गए तो की जगह अनधिकृत रूप से पहचान पत्र चेक कर उन्हें गलत करार दे दिया गया.

फैजाबाद जिले की जिस मिल्कीपुर (सुरक्षित) सीट का उपचुनाव चुनाव आयोग ने उच्च न्यायालय में लंबित एक याचिका के बहाने नहीं कराया, उसमें तो भाजपाई चुनाव कार्यक्रम के ऐलान के पहले से ही इस तरह ‘बदला-बदला’ (फैजाबाद लोकसभा सीट की हार का बदला) चिल्ला रहे थे, जैसे उन्हें राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों से नहीं, जानी दुश्मनों से निपटना हो. उन्हें अल्पसंख्यकों के दानवीकरण की किसी भी कोशिश से परहेज नहीं था.

घरेलू नौकर-सी नौकरशाही

मतदान के दिन कई जगह पुलिस के सिपाही और दरोगा नापसंद मतदाताओं को मतदान से वंचित करने के लिए चुनाव आयोग के निर्देश को धता बताकर उनके पहचान पत्र चेक करते, राह रोकते, उन्हें सताते व उन पर रिवॉल्वर तक तानते दिखे तो शायद ही किसी को यह मानने से गुरेज था कि वे अपने निजी जोखिम पर ऐसा नहीं कर रहे. कहीं न कहीं से उन्हें उंगली का बल मिला हुआ है और वे सब कुछ उसी उंगली के इंगित पर कर रहे हैं.

बहुतों की निगाह में वे ‘सिद्ध’ कर रहे थे कि किसी तरह के डर व भय के कारण हो, ‘जो भी होगा देख लेंगे’ के अलिखित आश्वासन से हासिल अभय या सांप्रदायिक भदभाव के सरकारी रवैये से स्वेच्छया जुगलबंदी के चलते, प्रदेश की नौकरशाही का बड़ा हिस्सा अभी भी खुद को योगी सरकार की भेदभाव की अनर्थकारी व आक्रामक नीतियों से नत्थी किए हुए है. अन्यथा पहले दिन से यह जानते हुए कि ऐसा करना संविधान के विरुद्ध है, वह एक इंगित पर बुलडोजर लेकर किसी का भी घर गिराने नहीं चल पड़ती. न ही चुनाव आयोग की मनाही के बावजूद भाजपा-विरोधी मतदाताओं को रोकती व धमकाती.

योगीराज में इस तरह के कार्यों में उसकी लिप्तता ने उसे जिस तरह उसे नियम-कायदों कहें या संविधान के बजाय सत्ताधीश के प्रति उसके घरेलू नौकर जैसी ‘वफादारी’ की आदत डाल दी है, ऐसा ही रहा तो हम उसकी कीमत कुछ चुनावों व उपचुनावों में ही चुकाकर थोडे़ रह जाएंगे. चुनावों की विश्वसनीयता का सवाल ऐसे में नतीजों से बड़ा नहीं होगा हो भला कब होगा?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

ShareSend
BBC Hindi News

BBC Hindi News

Related Posts

टॉप न्यूज़

Police secures conviction in Heinous crime in Ganderbal

June 17, 2025
DLSA Ganderbal holds meeting-cum-orientation and training session for SAATHI unit members
देश

DLSA Ganderbal holds meeting-cum-orientation and training session for SAATHI unit members

May 29, 2025
Food Safety Team Conducts Intensive Market Inspection to Ensure Compliance with Good Storage Practices
देश

Food Safety Team Conducts Intensive Market Inspection to Ensure Compliance with Good Storage Practices

May 29, 2025
Police solve theft case in Budgam; 03 accused arrested
टॉप न्यूज़

Police solve theft case in Budgam; 03 accused arrested

May 22, 2025
DC Ganderbal directs for timely completion of preparations for SANJY 2025
देश

DC Ganderbal directs for timely completion of preparations for SANJY 2025

May 22, 2025
SSP GANDERBAL CHAIRS CRIME & SECURITY REVIEW MEETING AT DPO GANDERBAL
देश

SSP GANDERBAL CHAIRS CRIME & SECURITY REVIEW MEETING AT DPO GANDERBAL

May 22, 2025
Next Post
कांग्रेस का साथ छोड़ने वाले अखिलेश यादव समझ नहीं पाए ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ | Opinion

कांग्रेस का साथ छोड़ने वाले अखिलेश यादव समझ नहीं पाए 'बंटेंगे तो कटेंगे' | Opinion

महाराष्ट्र में BJP को ब्लैकमेल नहीं कर पाएंगे शिंदे और अजित पवार, ये विधायक कभी बदल सकते हैं पाला

महाराष्ट्र में BJP को ब्लैकमेल नहीं कर पाएंगे शिंदे और अजित पवार, ये विधायक कभी बदल सकते हैं पाला

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Live Cricket Score

Live Cricket Scores

Corona Widget

Rashifal

Currently Playing
BBC Hindi News

BBC Hindi News is an online news portal that publishes latest and breaking news from all around the nation.

Recent Posts

  • “हत्या का आरोपी पुलिस की गिरफ्त मे”
  • Police secures conviction in Heinous crime in Ganderbal
  • “प्रशासन के साथ मिलकर क्षेत्र को और बेहतर बनाने का संकल्प लें” :–‘कलेक्टर दिव्या मिश्रा’
  • “ईद-उल-अदहा का त्यौहार खुशनुमा माहौल में मनाया गया”
  • “दुग्ध क्रांति में अहम भूमिका निभा रहा दूध गंगा”
  • “दुग्ध क्रांति में अहम भूमिका निभा रहा दूध गंगा”

Categories

  • अपराध
  • उत्तरप्रदेश
  • खेल
  • चुनाव
  • छत्तीसगढ़
  • छात्र
  • टॉप न्यूज़
  • दिल्ली
  • दुर्घटना
  • देश
  • धर्म
  • बिहार
  • मनोरंजन
  • महाराष्ट्र
  • मौषम
  • राजनीति
  • राजस्थान
  • राज्य की खबरें
  • लाइफस्टाइल
  • विज्ञान
  • विदेश
  • सोशल मीडिया
  • हिमाचल प्रदेश

Contact Us

Email : contact-bbchindinews.in@gmail.com, mpcglive.in@gmail.com
Phone : 9993058900, 9424257566
Website : bbchindinews.in

  • About Us
  • Contact Us
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions

© 2024 BBC hindi News - All Rights Reserved |

No Result
View All Result
  • Home
  • टॉप न्यूज़
  • देश
  • विदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • विज्ञान

© 2024 BBC hindi News - All Rights Reserved |

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In
← महाराष्ट्र में Power Centre से कैसे अब Powerless हो गए शरद पवार? ← कांग्रेस का साथ छोड़ने वाले अखिलेश यादव समझ नहीं पाए ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ | Opinion