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बिहार विधानसभा चुनाव से पहले देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था, जिसकी निष्पक्षता पर लोकतंत्र की नींव टिकी होती है, अब राजनीतिक दबाव में काम करती नजर आ रही है।
गहलोत ने आरोप लगाया कि शायद यह पहली बार है जब चुनाव आयोग के चेयरमैन और सदस्यों का रवैया विपक्षी नेताओं के प्रति इतना अशोभनीय रहा है। उन्होंने कहा, “पहले आयोग का व्यवहार संयमित और लोकतांत्रिक होता था, अब वह खत्म हो गया है।” उन्होंने राहुल गांधी द्वारा महाराष्ट्र से जुड़े मुद्दे उठाने और जवाब न मिलने पर लेख लिखने की मजबूरी को आयोग की जवाबदेही पर सीधा हमला बताया।
उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ चुनाव आयोग ही नहीं, बल्कि ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स विभाग जैसी संस्थाएं भी सरकार के दबाव में काम कर रही हैं। संसद में मिले जवाब के मुताबिक, विपक्ष पर 193 केस हुए, लेकिन केवल 2 मामलों में सजा मिली, बाकी केवल राजनीतिक प्रताड़ना थी।
कांग्रेस नेता टीकाराम जूली ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने कांग्रेस की जनकल्याणकारी योजनाएं जैसे ऑपरेशन सिंदूर बंद कर दीं। वहीं प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने माना कि कांग्रेस जनता से जुड़ने में असफल रही, जिससे नुकसान हुआ। उन्होंने कहा, “अब हम मैदान में लौट चुके हैं, मेहनती कार्यकर्ताओं को पूरा मौका मिलेगा।”
अशोक गहलोत चुनाव आयोग बयान ने लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता और चुनावी पारदर्शिता को लेकर नई बहस छेड़ दी है, जिसका असर आगामी चुनावों में देखने को मिल सकता है।