नई दिल्ली, जुलाई 2025: भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने देश के अधिकांश थर्मल पावर प्लांट्स को फ्लू गैस डीसल्फराइजेशन (FGD) प्रणाली स्थापित करने से छूट दे दी है। यह प्रणाली सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) जैसे खतरनाक गैसों को नियंत्रित करने के लिए जरूरी मानी जाती है, जो PM2.5 कणों के जरिए वायु प्रदूषण को बढ़ावा देती है।
देशभर में मौजूद लगभग 180 थर्मल पावर प्लांट्स में से अब केवल 11% ‘श्रेणी A’ में आने वाले संयंत्रों को अनिवार्य रूप से FGD लगानी होगी। ये वे प्लांट्स हैं जो एनसीआर या 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों के 10 किमी के दायरे में आते हैं। इन्हें अब 2027 तक का समय दिया गया है।
‘श्रेणी B’ और ‘C’ को राहत
‘श्रेणी B’ में आने वाले संयंत्र, जो गंभीर प्रदूषित क्षेत्र या गैर-प्राप्ति शहरों के पास हैं, उनके लिए फैसला विशेषज्ञ समिति (EAC) के अनुमोदन पर निर्भर करेगा, जिसकी अंतिम समय सीमा 2028 तय की गई है। शेष 78% संयंत्र (श्रेणी C) को पूरी तरह से FGD लगाने से मुक्त कर दिया गया है।
विशेषज्ञों की कड़ी प्रतिक्रिया
पर्यावरण और ऊर्जा विशेषज्ञों ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की है। विशेषज्ञ कार्तिक गणेशन ने कहा, “यह निर्णय विज्ञान आधारित नहीं है और इसे सावधानी से विश्लेषित किया जाना चाहिए था।” वहीं शोधकर्ता मनोज कुमार ने चेताया कि “पावर प्लांट्स 200 किमी दूर तक प्रदूषण फैलाते हैं, और यह फैसला लाखों लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकता है।”
छूट के पीछे तर्क
सरकारी समिति ने यह कहते हुए छूट दी है कि भारत में कोयले में सल्फर की मात्रा कम है और SO2 स्तर 80 माइक्रोग्राम/घन मीटर की सीमा से नीचे हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि कम स्थानीय स्तर पर प्रभाव का अर्थ यह नहीं है कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रदूषण का जोखिम कम हो गया है।