नई दिल्ली। विदेशी नागरिकों को लेकर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया हैं। कोर्ट ने कहा है कि,भारत देश में विदेशी नागरिकों को रहने और बसने का अधिकार नहीं है। यह फैसला एक एक बांग्लादेशी मुसलमान की याचिका पर सुनवाई के बाद आया है। उसने भारत में रहने और बसने के अधिकार का दावा किया था। पूरा मामले पर सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट में हुई।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि भारत एक संप्रभु राज्य है और वह अपने नागरिकों और अन्य लोगों को देश में रहने और बसने के अधिकार देने के लिए स्वतंत्र है। न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 में निहित अधिकार विदेशी नागरिकों पर लागू नहीं होता है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति मनोज जैन की खंडपीठ ने कहा कि विदेशियों या संदिग्ध विदेशी के मौलिक अधिकार केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत घोषित जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार तक ही सीमित हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने बांग्लादेशी नागरिक अजल चकमा के मामा द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में दावा किया गया था कि अजल को भारत में बिना अधिकार के अवैध रूप से हिरासत में रखा गया था।
दरअसल, अजल को अक्टूबर 2022 में दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से पकड़ा गया था। उस पर यह आरोप लगाया गया था कि उसने पहले बांग्लादेशी पासपोर्ट पर भारत की यात्रा की थी, लेकिन बाद में धोखाधड़ी से भारतीय दस्तावेज (पासपोर्ट सहित) प्राप्त कर लिए। हालांकि, बाद में भारतीय अधिकारियों ने उसके पासपोर्ट को रद्द कर दिया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार सभी नागरिकों को दिया गया है, जिसमें विदेशी नागरिक भी शामिल हैं। हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के तर्क को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 21 में शामिल “सभी” शब्द का अर्थ केवल भारतीय नागरिक हैं। अदालत ने कहा कि विदेशी नागरिक भारत में केवल वीजा के आधार पर रह सकते हैं और उनका वीजा किसी भी समय रद्द किया जा सकता है।