google.com, pub-4211912006974344, DIRECT, f08c47fec0942fa0 डिलीवरी के समय टूटी बच्चे की गर्दन की हड्डी, मां ने दान किया अपना अंग, इस तरह बचाई जान. - BBC Hindi News

डिलीवरी के समय टूटी बच्चे की गर्दन की हड्डी, मां ने दान किया अपना अंग, इस तरह बचाई जान.

Mothers Day 2023: एक मां के लिए उसके बच्चे से बढ़कर दुनिया में कोई भी अनमोल चीज नहीं होती है. अपने बच्चे के चेहरे पर एक मुस्कुराहट देखने के लिए, उसके जीवन से दुख-दर्द को दूर करने के लिए एक मां कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहती है.

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इस दुनिया में मां और बच्चे का रिश्ता सबसे ज्यादा प्यारा, अनमोल है. मां की ममता की छांव के तले एक बच्चे का लालन-पालन होता है. बच्चे को जरा सी खरोच भी आती है तो मां का दिल परेशान हो उठता है. लेकिन, तब क्या हो जब एक मां की आंखों के सामने उसकी नन्ही सी जान की जिंदगी दांव पर लगी हो. कोई भी मां अपने बच्चे को हॉस्पिटल में नहीं देखना चाहेगी, लेकिन मेरठ की रहने वाली शालू को ये दिन देखना पड़ा. शालू ने अपने पांच महीने के बच्चे को पूरे 11 महीने वेंटिलेटर सपोर्ट पर जिंदगी की जंग लड़ते देखा. खुद भी रात-दिन हॉस्पिटल में रहकर उसका पेट भरने के लिए अपना दूध पिलाती रहीं. आखिर क्या है शालू की कहानी, जानते हैं आज मदर्स डे के उपलक्ष में यह स्पेशल कहानी खुद शालू की जुबानी.

क्या है पूरा मामला जानें मां शालू की जुबानी

शालू कहती हैं, मेरे बच्चे का जन्म जब हुआ था तो उसका वजन लगभग साढ़े चार किलो था. उसका सिर भी नॉर्मल से अधिक बड़ा था, तो डिलीवरी कराने में काफी दिक्कत आ रही थी. ऐसे में प्रसव के समय उसे खींचकर बाहर निकाला गया, जिस वजह से उसकी गर्दन की हड्डी टूट गई थी. तब मेरी स्थिति भी बहुत नाजुक थी. मुझे खुद नहीं पता था कि हुआ क्या है. बच्चे के जन्म के बाद हम घर आ गए. छह-सात दिनों बाद हमने गौर किया कि वह अपना हाथ सही से नहीं हिला पा रहा है. धीरे-धीरे पता चला कि उसके हाथ में प्रॉब्लम है. कई बार तो सांसें भी मुश्किल से लेता था. डॉक्टर को दिखाने के लिए हलद्वानी लेकर गए ताकि उसके हाथ का चेकअप हो सके. जांच में पता चला कि दाईं हाथ की नसें उसकी उखड़ गई हैं. डॉक्टर ने कहा कि बेबी छोटा है, इसलिए साढ़े तीन महीने तक इंतजार कीजिए.

उस दौरान बेबी की फीजियोथेरेपी हुई, लेकिन फर्क नहीं पड़ा. फिर हम उसे एम्स, दिल्ली लेकर गए, जहां पूरी जांच के बाद पचा चला कि उसके गर्दन की हड्डी टूटने के साथ ही सर्वाइकल स्पाइन भी डिस्लोकेटेड है. बच्चे की हालत बहुत गंभीर थी. एम्स के न्यूरो सर्जन प्रो. डॉ. दीपक गुप्ता ने अपनी पूरी टीम के साथ बच्चे का इलाज शुरू किया. सीटी स्कैन, एमआरआई होने के बाद पता चला कि उसे स्पाइन की इंजरी हुई है. जून 2022 में शिशु की गर्दन की मेटल फ्री सर्जरी की गई. यह काफी कठिन और जटिल सर्जरी थी. इतनी छोटी सी उम्र में इस गंभीर सर्जरी से गुजरना बेहद तकलीफदायक होगा. मेटल फ्री स्पाइन फिक्शेन सर्जरी के बाद 11 महीने तक बेबी वेंटिलेटर सपोर्ट में रहा.

अपने बच्चे की जान बचाने के लिए कुछ भी करती

शालू कहती हैं कि वह अपने बच्चे की जान बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थीं. डॉ. दीपक और उनकी टीम ने मिलकर उसे एक नई जिंदगी दी है. यह सर्जरी लगभग 15 घंटे तक चली. चूंकि, इतनी कम उम्र में बच्चे की हड्डियां बहुत छोटी होती हैं तो इसलिए मेटल ट्रांसप्लांट करना मुश्किल होता है. ऐसे में रीढ़ को ठीक करने के लिए मैंने अपनी कमर से नीचे कूल्हे की हड्डी या इलियैक क्रेस्ट बोन (iliac crest bone graft) अपने बच्चे को देने के लिए तुरंत ही तैयार हो गई.

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11 महीने रहा हॉस्पिटल में बच्चा

बच्चा पूरी तरह से सर्जरी के बाद ठीक हो जाए, इसके लिए उसे कई अलग-अलग डॉक्टर की निगरानी में रखा गया. 10 जून 2022 को ऑपरेशन हुआ और ठीक 11 महीने के बाद यानी 10 मई 2023 को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया. फिलहाल शिशु धीरे-धीरे रिकवर कर रहा है. शालू कहती हैं कि अभी बच्चे को पूरी तरह से ठीक होने में काफी समय लगेगा. जब तक वह स्वस्थ नहीं हो जाता, मुझे चैन की नींद नहीं आएगी.

हॉस्पिटल में जन्म के समय हुई ये गंभीर समस्या

एम्स के न्यूरो सर्जन प्रो. डॉ. दीपक गुप्ता कहते हैं कि मेरठ में इस बच्चे का जन्म हुआ था. साढ़े पांच महीने का था, जब इसे एम्स ट्रॉमा सेंटर लाया गया. बच्चे का वजन साढ़े चार किलो था, इस वजह से नॉर्मल डिलीवरी के दौरान शिशु को पुल करके निकालना पड़ा. इसी दौरान बच्चे की गर्दन की हड्डी टूट गई थी. जन्म के बाद उसे बार-बार सीने में इंफेक्शन हो रहा था, वह हाथ-पैर नहीं चला रहा था. काफी जगह दिखाने के बाद वे मेरे पास ट्रॉमा सेंटर बेबी को लेकर आए. हमने जांच किया तो पाया की स्पाइन दो भागों में आगे-पीछे खिसक गई थी और सी 5 की एक हड्डी टूट कर अंदर गई हुई थी.

साढ़े पांच महीने की उम्र में हमारे सामने चैलेंज ये था कि उसकी हड्डी को कैसे फिक्स किया जाए, क्योंकि जितने भी ट्रांसप्लांट मौजूद हैं, वे सभी तीन साल से ऊपर के बच्चों के लिए हैं. तब मां से बात करके उनका 5 सेंटी मीटर का बोन क्राफ्ट लिया और बच्चे की आगे वाली हड्डी जो टूटकर अंदर चली गई थी, उसे निकालकर मां का बोन क्राफ्ट लगाया. उसके ऊपर घुलने वाली प्लेट लगाई. इस तरह से एक छोटे से शिशु पर कठिन सर्जरी को हम सफल बनाने में कामयाब रहे. फिलहाल वो डेढ़ साल का हो चुका है और 10 मई 2023 को डिस्चार्ज हुआ है. धीरे-धीरे पूरी तरह से रिकवर करने में उसे समय लगेगा. साथ ही फॉलो अप भी होगा.

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