Ayodhya ke ram Why is Bajrangbali worshiped in Hanumangarhi before Lord Ram: अयोध्या में रामलला के दर्शन से पहले श्रद्धालु हनुमानगढ़ी में बजरंगबली की पूजा करते हैं. मंदिर के पुजारी के मुताबिक, भगवान हनुमान देश के हर मंदिर में भगवान राम के दास के रूप में दिखते हैं और उन्हें भगवान राम का दास ही बताया जाता है, लेकिन अयोध्या में भगवान हनुमान ही राजा हैं. पुजारी महंत प्रेम दास के मुताबिक, हनुमानगढ़ी के बजरंगबली यहां के राजा के रूप में मंदिर में विराजमान हैं. यही वजह है कि रामलला के दर्शन से पहले भगवान हनुमान के दर्शन की परंपरा सदियों से चली आ रही है.
महंत प्रेम दास के मुताबिक, परलोक जाने से पहले भगवान राम ने ही बजरंगबली को यहां का राजा बनाया था. बता दें कि अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर परिसर का फैलाव 52 बीघा में है. 10वीं सदी में अयोध्या में बने हनुमानगढ़ी की काफी मान्यताएं भी हैं. हनुमानगढ़ी को सिद्धपीठ माना जाता है. मंदिर में माता अंजनी की गोद में बालस्वरूप भगवान हनुमान की मूर्ति है.
76 सीढ़ी चढ़ने के बाद बालस्वरूप बजरंगबली के होतें हैं दर्शन
हनुमानगढ़ी मंदिर में मौजूद बालस्वरूप बजरंगबली के दर्शन के लिए भक्तों को 76 सीढ़ियां चढ़नी होती है, जिसके बाद उनके दर्शन होते हैं. बता दें कि मंदिर बनने के पीछे भी कई कहानियां हैं. पहली कहानी ये कि राजा विक्रमादित्य ने सबसे पहले इस मंदिर का निर्माण कराया था. इसके बाद मुगल शासक औरंगजेब के शासनकाल में अयोध्या के राम मंदिर समेत भगवान हनुमान के हनुमानगढ़ी मंदिर पर भी हमले किए गए थे, लेकिन तब मौजूद भक्तों ने इस हमले को विफल कर दिया था.
मंदिर निर्माण में अवध के नवाब का भी रहा सहयोग
एक कहानीी के मताबिक, शुजाउद्दौला अवध के नवाब हुआ करते थे. एक बार अवध के नवाब का बेटा बीमार हो गया. तमाम वैद्य से इलाज के बाद भी नवाब के बेटे की तबीयत ठीक नहीं हुई. इसके बाद मंदिर के पुजारी बाबा अभयराम दास को नवाब के लोगों ने शहजादे को देखने के लिए मनाया. कहा जाता है कि बाबा अभयराम दास ने शहजादा को देखा और उसे हनुमानगढ़ी के चरणामृत पिलाकर ठीक कर दिया.
कहा जाता है कि अवध के नवाब के बेटे के ठीक होने के बाद उसने बाबा अभयराम दास से कुछ मांगने को कहा. तब बाबा अभयराम दास ने कहा कि आपकी इच्छा है तो आप भगवान हनुमान के मंदिर का भव्य निर्माण करा दें. इसके बाद अवध के नवाब ने 5 एकड़ में हनुमानगढ़ी मंदिर का विस्तार कराया.
बता दें कि रामजन्मभूमि के पास मौजूद ये मंदिर रामानंदी संप्रदाय के बैरागी महंतों और निर्वाणी अनी अखाड़े के अधीन है. कहा जाता है कि जब भगवान राम श्रीलंका में रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे, तब भगवान हनुमान इसी जगह रहकर अयोध्या की रक्षा करते थे, इसलिए इस जगह का नाम हनुमानगढ़ पड़ा, जो मंदिर बनने के बाद हनुमानगढ़ी के नाम से जाना जाने लगा.